ई-शिक्षा (ई-लर्निंग) को सभी प्रकार के
इलेक्ट्रॉनिक समर्थित शिक्षा और अध्यापन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो स्वाभाविक तौर पर क्रियात्मक होते हैं और जिनका उद्देश्य
शिक्षार्थी के व्यक्तिगत अनुभव, अभ्यास और
ज्ञान के सन्दर्भ में ज्ञान के निर्माण को प्रभावित करना है। सूचना एवं संचार
प्रणालियां, चाहे इनमें
नेटवर्क की व्यवस्था हो या न हो, शिक्षा
प्रक्रिया को कार्यान्वित करने वाले विशेष माध्यम के रूप में अपनी सेवा प्रदान
करती हैं।
ई-शिक्षा अनिवार्य रूप से कौशल एवं ज्ञान का कंप्यूटर एवं
नेटवर्क समर्थित अंतरण है। ई-शिक्षा इलेक्ट्रॉनिक अनुप्रयोगों और सीखने की
प्रक्रियाओं के उपयोग को संदर्भित करता है। ई-शिक्षा के अनुप्रयोगों और
प्रक्रियाओं में वेब-आधारित शिक्षा, कंप्यूटर-आधारित शिक्षा, आभासी कक्षाएं और डिजीटल सहयोग
शामिल है। पाठ्य-सामग्रियों का वितरण इंटरनेट, इंट्रानेट/एक्स्ट्रानेट, ऑडियो या वीडियो टेप, उपग्रह टीवी और सीडी-रोम (CD-ROM) के माध्यम से किया जाता है। इसे
खुद ब खुद या अनुदेशक के नेतृत्व में किया जा सकता है और इसका माध्यम पाठ, छवि, एनीमेशन, स्ट्रीमिंग वीडियो और ऑडियो है।
ई-शिक्षा के समानार्थक शब्दों के रूप में सीबीटी (CBT) (कंप्यूटर आधारित प्रशिक्षा), आईबीटी (IBT) (इंटरनेट-आधारित प्रशिक्षा) या डब्ल्यूबीटी (WBT) (वेब-आधारित प्रशिक्षा) जैसे संक्षिप्त शब्द-रूपों का
इस्तेमाल किया जा सकता है। आज भी कोई व्यक्ति ई-शिक्षा
(ई-लर्निंग/e-learning)
के
विभिन्न रूपों, जैसे - elearning, Elearning और eLearning (इनमें से प्रत्येक -
ईलर्निंग/ईशिक्षा), के
साथ-साथ उपरोक्त शब्दों का भी इस्तेमाल होता देख सकता है।
इतिहास
1993 के
बिल्कुल आरम्भ में विलियम डी। ग्रेज़ियाडी ने कई सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों के साथ
इलेक्ट्रॉनिक मेल, दो वैक्स नोट्स (VAX
Notes) सम्मेलनों और गोफर/लींक्स (Gopher/Lynx) का एकसाथ इस्तेमाल कर एक ऑनलाइन कंप्यूटर-वितरित व्याख्यान, ट्यूटोरियल
और मूल्यांकन परियोजना का वर्णन किया जिसकी सहायता से छात्रों और प्रशिक्षक ने
रिसर्च, एडुकेशन, सर्विस एण्ड टीचिंग (हिंदी में -
अनुसन्धान, शिक्षा, सेवा एवं अध्यापन; संक्षेप में - आरईएसटी/REST) में एक वर्चुअल इंस्ट्रक्शनल
क्लासरूम एनवायरनमेंट इन साइंस (हिंदी में - आभासी निर्देशात्मक विज्ञान कक्षा
वातावरण; संक्षेप
में - वीआईसीईएस/VICES) का निर्माण किया। 1997
में
डब्ल्यू। डी। ग्रेज़ियाडी और अन्य ने "बिल्डिंग ऐसिंक्रोनस
एण्ड सिंक्रोनस टीचिंग-लर्निंग एनवायरनमेंट्स: एक्सप्लोरिंग ए कोर्स/क्लासरूम
मैनेजमेंट सिस्टम सॉल्यूशन" (हिंदी में - अतुल्यकालिक और तुल्यकालिक
अध्यापन-शिक्षा वातावरण का निर्माण: एक पाठ्यक्रम/कक्षा प्रबंधन प्रणाली समाधान का
अन्वेषण) नामक एक लेख प्रकाशित किया। उनलोगों ने [[स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़
न्यूयॉर्क (हिंदी में - न्यूयॉर्क राज्य विश्वविद्यालय; संक्षेप में - एसयूएनवाई/SUNY)]]
में
अध्यापन-शिक्षा के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी-आधारित पाठ्यक्रम विकास एवं प्रबंधन
की एक सम्पूर्ण रणनीति विकसित करने एवं उत्पादों का मूल्यांकन करने की एक
प्रक्रिया का वर्णन किया। इन उत्पादों को ऐसा बनाया जाना था कि उन्हें इस्तेमाल
करने में आसानी हो, आसानी से
उनका रखरखाव किया जा सके, ये वहनीय
हो, इन्हें
दोहराया जा सके, मापा जा
सके और सामर्थ्यानुसार तुरंत ख़रीदा जा सके और लम्बे समय के लिए कम-खर्चीले होने
के साथ इनमें सफलता की अत्यधिक सम्भावना हो। आज ब्लॉग से लेकर सहयोगात्मक सॉफ्टवेयर, ईपोर्टफोलियो, एवं आभासी कक्षाओं तक ई-शिक्षा में कई
प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल किया जा सकता है और किया जाता है। अधिकांश ईशिक्षा
परिस्थितियों में इनमें से कई तकनीकों को एकसाथ इस्तेमाल किया जाता है।
ई-लर्निंग 2.0 (E-Learning 2.0)
ई-लर्निंग 2.0 शब्द/संज्ञा सीएससीएल (CSCL) प्रणालियों का एक नवनिर्मित प्रयोग है जिसकी उत्पत्ति वेब 2.0 (Web
2.0) के उद्भव
के दौरान हुई थी। अगर ई-लर्निंग 2.0 के नज़रिए से देखा जाए, तो पारंपरिक ई-शिक्षा प्रणालियां
अनुदेशात्मक पैकेटों पर आधारित थीं, जिन्हें इंटरनेट प्रौद्योगिकियों का
इस्तेमाल करने वाले छात्रों को वितरित किया जाता था। छात्र की भूमिका में पठनीय
सामग्रियों से शिक्षा ग्रहण करना और सौंपे गए कामों की तैयारी करना शामिल था। इन
कामों का मूल्यांकन शिक्षक करते थे। इसके विपरीत, नई ई-शिक्षा प्रणालियों के तहत सामाजिक शिक्षा और सामाजिक सॉफ्टवेयर, जैसे - ब्लॉग, विकी, पॉडकास्ट एवं आभासी विश्व, जैसे - सेकंड लाइफ (दूसरा जीवन), के इस्तेमाल पर और अधिक ज़ोर
दिया जाता है। इस घटना को लाँग टेल लर्निंग के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
इसे भी
देखें (Seely Brown & Adler 2008)
सीएससीएल (CSCL) पर अनाधारित ई-शिक्षा प्रणालियों के
विपरीत, ई-लर्निंग
2.0 के बारे में यह धारणा है कि ज्ञान (अर्थ एवं समझ के रूप में) का निर्माण सामाजिक तौर पर हुआ है। शिक्षा-कार्य सामग्री
के बारे में बातचीत और समस्याओं एवं कार्यों के बारे में आधारभूत बातचीत के माध्यम से होता है।
सामाजिक शिक्षा के अधिवक्ताओं का दावा है कि कुछ भी सीखने के सबसे बेहतरीन तरीकों
में से एक तरीका इसे अन्य लोगों को सिखाना है।
हालांकि, इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि न्यू जर्सी इंस्टिट्यूट
ऑफ़ टेक्नोलॉजी में 1970 और 1980 के दशक में मूर्रे टुरोफ़ और
रोक्सेन हिल्ट्ज़ द्वारा विकसित पाठ्यक्रम, कनाडा के यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्वेल्फ
के पाठ्यक्रम, ब्रिटिश ओपन यूनिवर्सिटी
के
पाठ्यक्रम और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया (जहां वेब सीटी (Web CT) सबसे पहले विकसित हुआ था, जो अब ब्लैकबोर्ड इंक। (Blackboard
Inc.) में
अंतर्भुक्त है) के ऑनलाइन दूरस्थ पाठ्यक्रम जैसी कई
आरंभिक ऑनलाइन पाठ्यक्रमों ने सदैव छात्रों के बीच ऑनलाइन चर्चा का बहुत ज्यादा
इस्तेमाल किया है। इसके अलावा, शुरू से ही, हैरासिम (1995) जैसे चिकित्सकों ने इस
ई-लर्निंग 2.0 से पहले ई-शिक्षा शब्द की उत्पत्ति से भी बहुत पहले, ज्ञान के निर्माण के लिए शिक्षा
नेटवर्कों के इस्तेमाल पर काफी बल दिया है।
मिनेसोटा राज्य के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों और साचेम स्कूल डिस्ट्रिक्ट जैसे विभिन्न शिक्षा प्रदाताओं
के समूह के लिए एक ऑनलाइन शिक्षा मच एवं कक्षा के रूप में आभासी कक्षाओं (ऑनलाइन
प्रस्तुतियां जिनका लाइव वितरण होता है) के उपयोग में भी काफी वृद्धि हुई है।
आभासी कक्षा के वातावरण बनने के अलावा ये सामाजिक नेटवर्क ई-लर्निंग 2.0 का एक महत्वपूर्ण भाग बन गए हैं। परीक्षण की तैयारी एवं भाषा शिक्षा जैसी विविध विषयों के इर्द-गिर्द ऑनलाइन शिक्षा समुदायों को प्रोत्साहित करने के लिए सामाजिक नेटवर्कों का इस्तेमाल किया जाता है।मोबाइल असिस्टेड लैंगवेज लर्निंग (माल/MALL) एक ऐसी संज्ञा है जिसका इस्तेमाल भाषा शिक्षा में सहायता करने वाले हस्तचालित कंप्यूटरों या सेल फ़ोनों के उपयोग का वर्णन करने के लिए किया जाता है।
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